कौन कबूल करता है

कौन कबूल कर पाता है
अब मेरे पास ना बल है
ना फल है
ना ही पत्ते है और ना ही छाया है
ये दिल कब कबूल कर पाता है
कभी मैं भी हरा भरा था
शान से खड़ा था
शीतल थी छाया
फल था सभी ने खाया
पर ये सब है यादें
है पुरानी बातें
नितान्त अकेला खड़ा हूं
कटने से ना डरा हूं

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