नैना अश्क ना हो..!!💔❣️


नैना अश्क ना हो.…...…........



नैनों में समन्दर आंसू का
हृदय में हाहाकार है
क्या कोई समझेगा मेरी पीड़ा को
उनके लिए तो व्यापार हैं
सर्वस्व न्यौछावर किया देश पे
इसका मुझको अभिमान है
करके दफन अपनी जख्मों को
पूरे अपने फर्ज करू
कष्ट ऊठाऊं चाहे जितना
हर जनम तुम्हरा वरण करूं
हर जनम तुम्हरा वरण करू।


 ये कहते हुए नव्या की आंखें से आंसुओं का वेग रोके नहीं रुक रहा था । जब ये शब्द नव्या ने वीरता पुरस्कार ले कर सभी के कुछ कहने के अनुरोध पर ये लाइनें कहीं। वहां कोई ऐसा नहीं बचा था जिसकी आंखों में आंसू ना हो। शब्दों में अपने मैं इतनी पीड़ा नहीं पीरो सकती जितना मैंने शाश्वत के जाने के बाद नव्या के भीतर महसूस किया। दोनों मेरे सामने ही बड़े हुए मैं उनकी गाइडटीचर ,दोस्त ,सबकुछ थी।
       शाश्वत बेहद होनहार था उसे एक बार पढ़ते हीं सारी चीज़ें याद हो जाती थी। जबकि नव्या औसत थी पढ़ाई में। दोनों की मैं टीचर के साथ पड़ोसी भी थी। शाश्वत शुरू से ही आर्मी ज्वाइन करना चाहता था और धीरे धीरे उसकी ये इच्छा ने संकल्प का रूप ले लिया।अब उसके जीवन में एक ही मकसद था सेना में जाकर देश की सेवा करना।
                  समय के साथ दोनों ही बारहवीं उत्तीर्ण हुए। जहां शाश्र्वत ने स्कूल टाॅप किया वहीं नव्या भी अच्छे नंबरों से पास हो गई। जहां ग्रेजुएशन के साथ शाश्वत सीडीएस की तैयारी में जुट गया। वहीं नव्या ने बीए में एडमिशन ले लिया। नव्या बेहद खूबसूरत लगने लगी थी । उसकी भाव पूर्ण आंखें बिना कहे ही सब कुछ कह जाती थी। उसका दूधिया उजला रंग जरा से धूप में चलते हीं तपने लगता। मैं जब भी दोनों को साथ देखती जाने क्या क्या सोच जाती। एकसाथ दोनों बेहद खुश रहते। पर मैं जानती थी ये संभव नहीं है। शाश्वत एक रूढ़ीवादी परम्पराओं वाले ब्राम्हण परिवार का लड़का था तो नव्या प्रतिष्ठा की खातिर जीने वाले ठाकुरों की बेटी थी। सब जानते थे कि दोनों दोस्त है साथ पढ़ते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं। किसी को ये गुमान भी नहीं था कि ये दोस्ती कोई और रंग भी ले सकती है।पर मैं जानती थी ये सिर्फ दोस्ती नहीं है। एक दिन क्लास रूम में लगातार एक दूसरे को देखने पर मैं ने उन्हें अकेले में बुला कर समझाना चाहा। शाश्वत कुछ देर तक तो चुप रहा फिर कहने लगा । हम दोनों ही एक-दूसरे के प्रति बेहद गंभीर है और अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद शादी करना चाहते हैं। नव्या भी चुपचाप खड़ी मूक सहमति देती प्रतीत हो रही थी। मैं ने बस पढ़ईपर ध्यान देने को कहकर उन्हें वापस भेज दिया। परन्तु मन ही मन मैं सोच रही थी काश ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो। काले घुंघराले बालों और ऊचे कद वाला शाश्वत और निराली नव्या दोनों की जोड़ी मुझे भाने लगी।
                                 ग्रेजुएशन पूरा होते ही शाश्वत का चयन सीडीएस में हो गया । नव्या ने एम ए में एडमिशन ले लिया। ट्रेनिंग में जाने से पहले वो और नव्या मुझसे मिलने आए हाथ में मिठाई का डब्बा पकड़कर शाश्वत ने मेरे पांव छुए और कहने लगा मेरा चयन सीडीएस में हो गया है । मैंने उन्हें अंदर बिठाया और कहा बैठो मैं तुम लोगों के लिए कुछ ले आती हूं। नव्या ने कहा आप बैठिए मैं मैं लेकर आती हूं।ये कहकर उठ कर रसोई में चली गई। उसके आते हीं मैंने पूछा आगे तुम दोनों ने क्या सोचा है। शाश्र्वत ने कहा बस ट्रेनिंग पूरी होते ही घर में बात करूंगा। नव्या ने बस हां में सिर हिलाया। थोड़ी देर रूक कर दोनों चले गए।
                                                                  जाने से पहले शाश्वत मंदिर जाना चाहता था। उसनेे नव्या को फोन किया । अभी वो बात कर हीं रही थी कि उसकी मम्मी (गायत्री)आ गई और बोली कब से पुकार रही हूं किससे बात कर रही है जो सुन नहीं रही नव्या गले में झूलते हुए बोली मम्मी शाश्वत का फोन है मंदिर चलने को बोल रहा है जाऊं ? कल वो देहरादून चला जाएगा। ठीक है ठीक है जा कहते हुए उन्होंने उसने गाल सहला दिया। हमेशा जींन्स शर्ट पहनने वाली नव्या आज क्या पहने नहीं समझ पा रही थी। नव्या ने सारी आलमारी खंगाल कर एक येलो सूट पसंद किया। उसे पहन कर सोचा थोड़ा सा मेकअप कर लू पर फिर उसे इसकी कोई जरूरत नहीं महसूस हुई। भावपूर्ण बड़ी बड़ी आंखें बिना काजल के ही कजरारी दिखती थी। दूधिया उजला रंग किसी भी क्रीम पाउडर का मोहताज नहीं था। तभी बाहर बाइक की हाॅर्न की आवाज सुनकर मां जा रही हूं कहते हुए निकल गई। उसके इस नये रूप को शाश्वत देखता हीं रह गया।।
                           नव्या के बैठते ही उसने बाइक आगे बढ़ा दी। ऊंचे-नीचे रास्ते से होते हुए दूर पहाड़ी पर स्थित मंदिर में पहुंच गए। शाश्वत ने बाइक खड़ी कर हाथ मुंह धोकर फूल माला खरीदा और नव्या के साथ मंदिर के अंदर प्रवेश कर गया। दोनों ने मिलकर दर्शन किए और मंदिर के पास बहती नदी के किनारे सीढ़ियों पर आकर बैठ गए। नव्या पूछोगी नहीं मैं यहां तुम्हें क्यूं लेकर आया हूं। ईश्वर ने मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी ख्वाहिश देश की सेवा करने की पूरी कर दी। अब मैं अपनी दूसरी ख्वाहिश पूरी करने की प्रार्थना करने आया हूं।जिसका नाम मेरी हर सांस पर लिखा है उसे मेरी जिंदगी में शामिल करने आशिर्वाद प्राप्त करने आया हूं। और तुम......।नव्या ने अपना हाथ शाश्वत के हाथों पर रखते हुए कहा क्या अब भी कुछ कहने की आवश्यकता है। दोनों मुस्करा कर एक दूसरे को देखने लगे।
 इस तरह भविष्य के सपने बुनते हुए दोनों को समय का आभास न हुआ। जब एहसास हुआ काफी देर हो चुकी थी। दोनों जल्दी जल्दी बाहर आ गए और घर की ओर चल दिए। पूरे रास्ते नव्या ने अपना सर शाश्वत के कंधे पर टिका रखा था । शाश्वत की खुशी का ठिकाना नहीं था।                      
                                                                इधर नव्या के पापा नवल जी घर आने पर नव्या को आवाज दी। गायत्री ने कहा वो शाश्वत कल ट्रेनिंग पर चला जाएगा ना इसलिए उसी के साथ मंदिर गई है। हूं कहते हुए वो बोले अब वो बच्चे नहीं रहे जो साथ भेज देती हो। गायत्री बोली आप चिंता मत करिए शाश्वत ऐसा वैसा नहीं है वो बहुत अच्छा लड़का है। वो बोले यही तो चिंता है कि वो बहुत अच्छा लड़का है। हम राठौर है वो ब्राम्हण समाज से है । कहीं नव्या को भी ................... कहकर वहां से बाहर निकल कर नव्या के आने की प्रतीक्षा करने लगे। थोड़ी देर बाद वो आ गई शाश्वत उन्हें देखते ही बाइक से उतरा और नमस्ते अंकल कहते हुए वो उनके पांव छू लिया। वो पीछे ये कहते हुए हट गए हमारे यहां ब्राम्हण से पैर नहीं छुआते। क्या अंकल अब ये सब कौन मानता है। मैं मानता हूं कहकर रुष्ट से नव्या अंदर चलो कहते हुए अंदर चले गए।नव्या भी हाथ हिलाते हुए अंदर आ गई।
                                                    रात में खाने की टेबल पर मां ने पूछा कहां निकल गया था बड़ी देर कर दी। मां मैं मंदिर चला गया था । सोचा जाने से पहले भगवान के दर्शन कर लूं। ठीक किया बेटा तू अकेला गया था? मां ने पूछा नहीं मां नव्या भी गई थी।ये सुनते ही उसके पापा नाराज हो गए। शाश्वत अब तुम लोग बच्चे नहीं रहे।जो साथ घूमते रहो।कल को साथ देखकर कोई भी कुछ भी कह सकता है । शाश्वत खामोश रहा। वो अपने मां पापा का बहुत सम्मान करता था। पर अपने प्यार को छिपाना भी नहीं चाहता था। उसे झूठ बोलना बिल्कुल भी पसंद नहीं था। आज जब बात चली है तो वो उन्हें अंधेरे में रखना नहीं चाहता। जो बात कल मुझे उनसे करनी है आज ही कर लेता हूं। नहीं तो बाद में फिर उन्हें लगेगा मैं ने उनसे झूठ बोला।
        रात में सोने के पहले वो मां पापा के कमरे में गया। और बिस्तर पर बैठ कर पापा के पैर दबाने लगा। अरे!!
शीतू तू सोया नहीं कल जाना है जा सो जा। बहुत प्यार आने पर शांतनु जी शाश्वत को इसी नाम से पुकारते थे। नही पापा रास्ते भर तो सोना हीं है मैं बचा समय आप सब के साथ बिताना चाहता हूं। पैर दबाते हुए शाश्वत ने कहा पापा मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं। शांतनु जी आंखें बंद किए हुए हघ बोले क्या बेटा बोल। पापा वो .... पापा वो.....
 क्या पापा वो कर रहा है बोल ना। पापा वो मैं नव्या से शादी करना चाहता हूं। सुनते ही शांतनु जी का रक्त जैसे जम गया।उनका सनातनी मन पंडित के घर के अलावा किसी के घर का पानी भी नहीं स्वीकार करता था । और बेटा ठाकुर की बेटी लाने की बात कह रहा है।                  


 उन्हें इस बात की खुशी थी कि शाश्वत ने झूठ नहीं बोला था उनसे।
 शाश्वत ने अपने पिता को एक अजीब सी दुविधा में डाल दिया था। अगर वो बेटे की इच्छा का मान रखते हैं, तो समाज में क्या प्रतिष्ठा रह जाएगी? कैसे सामना करेंगे समाज से मिलने वाले तानों का ? अभी कुछ समय पहले ही उनके साथ काम करने वाले सिन्हा जी के बेटे ने साथ पढ़ने वाली यादव जी की पुत्री से विवाह कर लिया था। बेशक दोनों खुश थे परन्तु, उस समय बहुत चर्चाएं हुई थी। हर किसी की जुबान पर उन्हीं की बातें रहती थी। पूरा घटनाक्रम उन्हें याद आ गया। फिर उन्होंने सोचा शाश्वत अभी तो ट्रेनिंग पर जा रहा है । जब तक ट्रेनिंग पूरी नहीं हो जाती है वो आएगा नहीं। इतना समय काफी होता है किसी को भी भूलने के लिए। हो सकता है तब तक नव्या इसके दिल से उतर जाए। उन्हें थोड़ी देर बाद पूरा विश्वास होने लगा कि नई जगह जा कर वो अवश्य ही नव्या को भूल जाएगा। ये उम्र ही ऐसी होती है कि लड़के सहज ही लड़कियों की ओर आकर्षित हो जाते हैं । इसका यकीन होते हीं उनका मन शांत हो गया और वो तुरंत ही गहरी नींद में सो गए।
               सुबह से ही तैयारियां शुरू हो गई । मां कभी अचार का डब्बा रखती, तो कभी च्यवनप्राश का, कभी लड्डू रखने की हिदायत देती , तो कभी मठरी रखने की। तभी शांतनु जी आए और कहने लगे अरी ! भाग्यवान ये सेना में अफसर बनने जा रहा है किसी छोटी मोटी नौकरी पर नहीं ।उसे वहां हर चीज मिलेगी । क्यों ? बेटा बताया नहीं मां को शाश्वत हंसते हुए बोला मिलेगा तो पापा पर उसमें मां का प्यार थोड़ी ना होगा । इतना कहते हुए वो मां के कमर में हाथ डाल कर पीछे पीठ से चिपक गया। मां की आंखों में
(बेटे से बिछुड़ने का सोच कर) आंसू आ गए । जिन्हें किसी के देखने के पहले ही पोंछ दिया। प्यार से डांटते हुए बोली
अच्छा अच्छा ठीक है चल हट मुझे काम करने दे। शाश्वत बेहद खुश था। उसे लग रहा था पापा ने कुछ कहा नहीं इसका मतलब उन्हें इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है । सारी तैयारी हो गई। शाम की ट्रेन पर पापा मां और साक्षी
छोड़ने आए थे। उसे छोड़ कर सभी घर आ गए। घर शाश्वत के बिना खाली खाली लग रहा था।
                                                  इधर ट्रेन चलते ही अपना सामान रख कर शाश्वत आराम से बैठ गया। बैठते ही उसने नव्या को फोन लगाया। खुशी से बताने लगा मैंने रात में पापा से बात की थी , पर उन्होंने कुछ कहा नहीं इसका मतलब वो राज़ी है। नव्या ने शक जाहिर करते हुए कहा कि
हो सकता है कि नाराज़ हों इसलिए कुछ ना कहा हो। ये तो मैंने सोचा हीं नहीं। पर पापा गुस्सा नहीं थे यही मेरे लिए काफी है मैं सब ठीक कर लूंगा। काफी देर तक बातें करता रहा वो क्योंकि उसे पता था कि वहां पहुंच कर वो व्यस्त हो जाएगा। अब ज्यादा वक्त बात करने के लिए नहीं मिल पाएगा। उसके बाद वो मां का दिया स्वादिष्ट भोजन किया और सो गया।
                  सुबह आंख खुली तो ट्रेन पूरे वेग से भागी जा रही थी। उसने फ्रेश होकर नाश्ता किया और स्टेशन आने की प्रतीक्षा करने लगा । ट्रेन सही समय पर देहरादून पहुंच गई।
 वहां उतरते ही उसे सेना की वर्दी में कुछ लोग दिखे तो वो समझ गया कि ये सब उसे ही लेने आए हैं । पास जाकर उसने अपना परिचय दिया। इसके बाद एक शख्स सामान जीप में रखने लगा। वो सीधा उनके साथ हेड क्वार्टर गया
 और रिपोर्टिंग दर्ज कराई ।
                                         उसी दिन वो हाॅस्टल में शिफ्ट हो गया । अगले दिन से उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई।  
 सुबह की पहली किरण दिखाई देने के पहले ही ग्राउंड
 में पहुंचना होता था । बेहद थकाने वाली दिनचर्या के पश्चात रात में बिस्तर पर पड़ते ही सो जाता और उसे होश ना रहता।कुछ समय लगा , उसे यहां के परिवेश में रचने बसने में । फिर उसके बाद उसे यहां समय की कोई परेशानी नहीं हुई। अब वो समय निकाल कर घर भी बात कर लेता और नव्या से भी ।
            धीरे धीरे समय बीतता गया और ट्रेनिंग पूरी हो
  गई। आज उसे घर आना था। मां, साक्षी और पापा बेसब्री से उसका इंतजार कर रहे थे । घर पहुंचते ही जैसे त्योहार का माहौल बन गया। मां ने तरह-तरह के पकवान बनाए थे जो सब के सब शाश्वत को बहुत पसंद थे। बेहद खुशनुमा माहौल में सभी ने रात का खाना खाया। सभी कुछ देर शाश्वत से वहां के अनुभवों को सुनते रहे और उसके बाद अपने अपने कमरे में सोन चले गए।
            इस बीच में शांतनु जी के मन से नव्या की बात निकल चुकी थी। वो इस बात को लगभग भूल गए थे। कई अच्छे रिश्ते शाश्वत के लिए आए थे। उन्होंने पूरा मन बना लिया था कि शाश्वत से बात कर के जो भी रिश्ता उसे जंचेगा वहां बात पक्की कर देंगे। उन्होंने शा्श्वत की मां से कहा तुम सुबह शीतू को सारी तस्वीरें दिखा कर पूछ लेना
जहां भी वो चाहेगा बात पक्की कर देंगे। मैं चाहता हूं पोस्टिंग पे वो जाए तो शादी कर के ही जाए। इसके पश्चात वो सो गए ।
                 सुबह सभी ने साथ में नाश्ता किया और शांतनु जी ऑफिस चले गए। मां, शाश्वत और साक्षी बैठ कर बातें कर रहे थे। शाश्वत अपने ट्रेनिग की मजेदार वाकये
सब को सुना रहा था। तभी मां को शांतनु जी की बात याद आ गई और वो बोली साक्षी बेटा जा वो तस्वीरें तो ला कर भैया को तो दिखा । साक्षी भी बेहद उत्साहित थी भैया की शादी को लेकर। घर में चर्चा होती थी तो वो भी शामिल रहती थी । सारी तस्वीरें उसी ने संभाल कर रखीं थी ।
 झट से गई और लेकर आई । देखो भैया ये सभी कितनी
 सुन्दर हैं । एक फोटो दिखाते हुए साक्षी बोली भैया मुझे तो ये बहुत अच्छी लग रही है तुम बताओ कि तुम्हें कौन सी अच्छी लग रही है। पर बिना देखे ही शाश्वत ने सारी तस्वीरें
 बगल सरका दी और साक्षी से बोला छोटी तेरे हाथों की चाय पीये बहुत समय हो गया जा जरा अपने हाथों की अच्छी सी चाय तो पिला । जी भैया कहती हुई साक्षी रसोई में चली गई। उसके जाने के बाद शाश्वत ने मां से कहा मां
 मैंने बताया तो था आप सब से कि मैं नव्या से शादी करना चाहता हूं। फिर ये सब क्या है ? बेटा हमें तो लगा ये सब तू भूल गया होगा। क्या मां मैं तो समझा कि आप सबों को कोई एतराज़ नहीं। पर बेटा ये सब भी बहुत अच्छी लड़कियां हैं तू इनके साथ खुश रहेगा । शाश्वत नीचे फर्श पर बैठ कर मां के गोद में सर रख कर बैठ गया। और बेहद भावुक होकर कहने लगा मां मैंने हमेशा से ही नव्या को ही
  अपने जीवन साथी के रूप में देखा है । अगर वो नहीं तो
  कोई भी नहीं मां , कोई भी नहीं, मां बस मुझे मेरी खुशी देदो । कहकर बिल्कुल खामोश हो गया ।    

उस दिन पापा ने बार बार शाश्वत से पूछा बताओगे कि क्या करूं ?
पर वो कुछ भी नहीं कह पाया । किसी को भी कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए ? जब दोपहर में नव्या से बात हुई तो शाश्वत ने कहा कि तुम अपने पापा को मेरे यहां भेजो पर वो साफ मुकर गई।
 ना! बाबा ! ना मेरी हिम्मत नहीं है ,कि मैं पापा या मम्मी से बात कर सकूं ।
शाम को सब ने मिलकर ये फैसला किया कि नव्या के मम्मी- पापा को फोन कर यहां खाने पर बुलाया जाए। फिर उसी समय बात की जाएगी ।
शांतनु जी ने शाश्वत से बोला कि नव्या के पापा को फोन मिला कर दे । शाश्वत ने नंबर मिला कर फोन पापा को पकड़ा दिया ।
उधर से हैलो बोलने पर,
 शांतनु जी ने अपना नाम बताया और कहा आपने सुना ही होगा कि शाश्वत अपनी ट्रेनिंग पूरी कर के आ गया है । मैं इसी खुशी में "आप सबको कल दोपहर के खाने पर बुलाना चाहता हूं" । कल रविवार है और आप की भी छुट्टी रहेगी।
" आप सभी कल आइये" । कुछ समय दोनों परिवार साथ में बिताएंगे । नव्या के पापा ने भी हां कर दी । फोन रख कर शांतनु जी बोले भई मैं ने आमंत्रित कर दिया है; और नवल जी ने भी हां कर दी है। अब तुम तैयारी कर लो ।
 शाश्वत की मां ने कहा, ठीक है आप परेशान ना होइये "मैं समय से पहले सारी तैयारी कर लूंगी "।
                                                 
   सुबह से ही शाश्वत और साक्षी मां के साथ तैयारी में व्यस्त थे ।

मां ने ढेर सारी चीजें बना डाली थी ।
तय समय पर नवल जी ,नव्या और उसकी मम्मी के साथ आ गए । कुछ देर तक तो हल्की - फुल्की बातें होती रही , फिर शांतनु जी बोले -

अरे !"भाई बात ही करती रहोगी "या इन्हें खाना भी खिलाओगी ।
 शाश्वत की मां उठकर खड़ी हो गई हां !हां !अभी परोसती हूं चल साक्षी बेटा मेरे साथ तू , वो साक्षी को लेकर जाने लगीं तो नव्या भी उठ खड़ी हुई आंटी मैं भी चलती हूं । इसपर शांतनु जी ने तुरंत ही कहा नहीं ! नहीं! बेटा तुम रहने दो ।


" नव्या की मम्मी ने भी उसे रोक लिया "क्योंकि , उन्हें पता था शांतनु जी किसी का रसोई में जाना पसंद नहीं करते हैं। शाश्वत की मां ने घूरकर प्रश्न वाचक नज़रों से देखा । जिसे तुरन्त ही, वो समझ गए ।
बोले हां! हां! नव्या तुम भी जाओ खाना लगाने में मदद कर दो । ये सुन कर नवल जी और उनकी पत्नी विस्मित रह गए। भोजन बेहद स्वादिष्ट था। सबने मन से खाया ।
                सब आपस में बैठकर बातें कर रहे थे।
 नव्या साक्षी और शाश्वत के साथ खूब इन्ज्वाॅय कर रही थी। शांतनु जी ने अब हौसला कर बात करने की सोची और कहा नवल जी मैंने एक खास मकसद से आप सब को बुलाया है । नवल जी बोले हां हां शांतनु जी कहिए । बात ऐसी है कि नव्या और शाश्वत दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हैं और शादी करना चाहते हैं । आप की क्या राय है । नवल जी को शक तो था पर बात यहां तक बढ़ जाएगी इसका उन्हें अनुमान न था । वो अचानक इस बात की चर्चा करने से असहज हो गए, और नव्या को प्रश्न पूर्ण नज़रों से देखने लगे। नव्या ने निगाहें नीचे झुका ली । अपने आप को संयत कर थोड़ी देर बाद वो बोले मुझे इस बात का पता नहीं था । नव्या क्या ये सच है ? नव्या डरते डरते धीरे से बोली जी पापा । नवल जी बोले देखिए शांतनु जी शाश्वत बहुत ही संस्कारित है मुझे उसको अपनाने में कोई परेशानी नहीं है पर हमारे समाज में क्या स्वीकृति मिलेगी । शांतनु जी बोले यही समस्या तो हमारे साथ भी है ।पर जब हमारे बच्चे हीं खुश नहीं रहेंगे तो समाज को लेकर हम क्या करेंगे।
 नवल जी बोले ठीक ही कह रहे हैं आप। इसके पश्चात सभी ने मिलकर बात चीत कर शादी का मुहूर्त निकालने का निर्णय किया । सबसे करीब एक महीने बाद का मुहूर्त निकला । नव्या के पापा धूम धाम से शादी करना चाहते थे । परंतु शाश्वत और नव्या की जिद्द थी कि कोई भी दिखावा नहीं करना है ।हम बिल्कुल साधारण से कार्यक्रम मे शादी करना चाहते हैं ।                                                          
                तय शुभ मुहूर्त पर कुछ बेहद करीबी रिश्तेदारों की उपस्थिति में नव्या और शाश्वत की शादी हो गई । नव्या इकलौती औलाद थी मम्मी पापा को उसे विदा करना बहुत मुश्किल था, परंतु जो जग की परंपरा है उसे तो निभाना ही था ।नव्या बहू बनकर शाश्वत के घर आ गई । पूरे घर में जैसे रौनक आ गई हो ।नव्या जब साड़ी में लिपटी और पायल छनकाती हुई सुबह सुबह शाश्वत के मम्मी पापा के पांव छूती तो वो निहाल हो जाते । आशिर्वाद की झड़ी लगा देते । शांतनु जी के मन में नव्या के ठाकुर होने का खटका बहुत जल्दी ही निकल गया। तीन महीने की छुट्टी के बाद शाश्वत को पोस्टिंग पर जाना था । वो भी चाहता था कि नव्या उसके साथ चले परंतु सीमा पर तैनाती होने की वजह से उसे नहीं ले जा सकता था । समय पंख लगा कर उड़ रहा था । जाने का दिन भी आ गया । भारी मन से शाश्वत ने सबसे विदा
 लिया नव्या के मम्मी पापा भी आए थे शाश्वत को मिलने । उनकी इच्छा थी कि शाश्वत तो चला जा रहा है नव्या को अपने घर विदा करा ले । इन कुछ दिनों में ही नव्या ने शाश्वत के मम्मी - पापा के दिल में जगह बना ली थी । उसे भेजने की इच्छा तो शांतनु जी की भी नहीं थी , पर उन्होंने नव्या पर निर्णय छोड़ दिया । नव्या ने ये कहते हुए मना कर दिया कि शाश्वत के ना रहने पर उसकी जिम्मेदारी है कि मम्मी - पापा की देखभाल करना इसलिए वो नहीं जाएगी । उसके इस फैसले से जहां शाश्वत को अपने प्यार पर गर्व हुआ।
 वहीं शांतनु जी भी सोच रहे थे कि मैं ने रिश्ते के लिए हां कर के कोई गलती नहीं की है । उन्होंने कितने ही लड़कियों को देखा था जो अपने पति के जाने के बाद फौरन ही मायके का रुख कर लेती थीं ।
                शाश्वत के जाने के बाद घर में सन्नाटा सा फ़ैल गया था । नई नवेली दुल्हन नव्या पति के जाने से उदास हो गई थी । साक्षी बिल्कुल परछाई की तरह उसके साथ रहती। पापा और मां भी उसके दिलजोई का प्रयास करते रहते ।
                         शांतनु जी ने नव्या का अकेलापन दूर करने के उद्देश्य से उसको आगे पढ़ने को प्रेरित किया ।
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक कोचिंग सेंटर में नामांकन करवा दिया । अब नव्या का समय आराम से कटने लगा वो सुबह मां के साथ मिलकर नाश्ता बनाने के बाद कोचिंग चली जाती । शाम को जब आती तो आराम करती और कुछ खाने-पीने के बाद रात की तैयारी में मां की मदद में जुट जाती। वो कितना मना करती कि नव्या तू रहने दे बेटा थक गई होगी। पर वो न मानती नहीं मां मुझे आपकी मदद करना अच्छा लगता है ।

                                         उधर शाश्वत की पोस्टिंग उधमपुर केआर्मी बेस के किश्तवाड़ में थी"। घर से आने के बाद उसे कुछ समय लगा यहां के परिवेश में ढलने में , पहाड़ों के बीच का अनुभव अब काम आ रहा था । बाॅर्डर पास होने के कारण सेना की एक टुकड़ी हमेशा अलर्ट मोड में रहती थी। लगातार गश्त पर जाना होता था । यहां मोबाइल नेटवर्क भी नहीं आता था। कभी कभी ही ऐसा होता जब नेटवर्क आता और तभी घर पे बात हो पाती थी ।
         
             इधर नव्या भी हमेशा मोबाइल अपने हाथ में लिए रहती थी, क्या पता कब शाश्वत की काॅल आ जाए ? और कही ऐसा ना हो, कि वो जब तक फोन रिसीव करे फोन कट जाए । शाश्वत तो चला गया था, पर उसकी यादें नव्या को व्याकुल कर देती थी । उधर, "शाश्वत का भी यही हाल था"। जब भी फ्री होता बस बात करने के लिए नेटवर्क की तलाश में रहता । समय बीत रहा था ।

" धीरे-धीरे एक वर्ष पूरा होने को आया "। उसको छुट्टी मिलने वाली थी । उसके आने की खबर से नव्या बेहद खुश थी। रोज कैलेण्डर में एक दिन कम होने का गोला करती रहती ।
                 इधर ,शाश्वत भी आने की तैयारी कर रहा था । उसने सब के लिए कोई -ना -कोई उपहार खरीद लिया था । नव्या और साक्षी के लिए उसने खासकर कश्मीरी कढ़ाई वाला सूट खरीद कर रख लिया था। नव्या की मम्मी और अपनी मां के लिए पश्मिने की शाॅल खरीदी थी । घर आने में कुल पांच दिन बचे थे । शाश्वत की गश्त में रात की शिफ्ट थी ।

" वो अपनी टुकड़ी के साथ दूर तक निकल गया था" । जब वापस लौटने लगा ,

 "तभी उसे दूर अंधेरे में कुछ आहट सुनाई दी" ऐसा लगा जैसे कोई छुप कर उनका पीछा कर रहा है । शाश्वत ने अपने सहयोगियों को इशारा किया, कि वे चुपचाप धीरे-धीरे चलते रहे और पीछे होने वाले हर हरकत पर नजर रखे । कुछ देर बाद उन्हें एहसास हुआ कि पीछे पीछे जो चल रहे थे उनकी संख्या कुछ और बढ गई है । अभी, चौकी थोड़ी ही दूर और थी ।
 "शाश्वत सोच रहा था कि ऐसे ही थोड़ी दूर और उन्हें भ्रमित कर के चौकी तक पहुंच जाए "तो उसे और सैन्य सहायता मिल जाएगी ।
 "फिर उनपर काबू पाने में कोई परेशानी नहीं होगी" । पीछा करने वाले आतंकवादी लग रहे थे और वो संख्या में भी इन लोगों से दो गुने लग रहे थे । एक बार तो शाश्वत ने सोचा कि पलट कर फायर झोंक दे ; पर उनके पास भी हथियार काफी मात्रा में है, ऐसा उसे आभास हो रहा था।
'उसे अपनी कोई परवाह नहीं थी , पर साथ में रहे सिपाहियों की उसे चिंता थी शायद वो शाश्वत की मंशा समझ गए थे । अभी वो चौकी से थोड़ी ही दूर थे और गुप्त रूप से मैसेज भेज चुके थे कि उनका पीछा किया जा रहा है और पीछा करने वाले संख्या बल में ज्यादा है ।
                                         वह उन्हें चकमा देने में कामयाब हो रहे थे सहयोगी दल आ ही रहा था कि तभी अचानक से वो लोग पीछे चल रहे एक सैनिक को पकड़ लिया । और उन्हें चेतावनी देकर रुकने को कहा ।
अब कोई चारा नहीं था शाश्वत ने अपने साथियों को मोर्चा लेने के लिए इशारा किया और खुद आतंकवादियों को ललकारता हुआ आगे बढ़ गया और खुद को सुरक्षित पोजीशन में आड़ लेकर फायर करने लगा । उसके इस हमले के लिए वो तैयार नहीं थे । शाश्वत के साथी भी पोजीशन ले चुके थे।
एक -एक कर करके जो भी आतंकवादी भागने की कोशिश करता उन्हें गोलियों से भून दिया जाता । फायरिंग की आवाज से आने वाली मदद और भी जल्दी आ गई । आतंकियों को चारों ओर से घेर लिया गया था । करीब एक घंटे तक आपरेशन चला सारे आतंकियों को मार दिया गया।
सब वापस जाने लगे । तभी शाश्वत मुड़ा ,और एक आतंकवादी जो पेट के बल पड़ा था उसके पास गया । शाश्वत को कुछ शक हुआ कि शायद वो अभी वो जीवित है। वो उसके पास पहुंच कर जैसे ही सीधा करने की कोशिश करने लगा। वो आतंकवादी मरा नहीं था सिर्फ वो शाश्वत की
सैन्य टुकड़ी को भ्रमित करने की कोशिश कर रहा था ।

"अचानक ही वो आतंकवादी पलटा और शाश्वत के ऊपर गोलियों की बौछार कर दी" । ये इतना अचानक ,हुआ कि शाश्वत खुद को न बचा सका, परन्तु शाश्वत ने गिरने से पहले उसकी गन छीन ली और उसके गन की बची गोलियां उसी के अंदर उतार दी । साथ रहे सैनिकों ने तुरंत ही मोर्चा लिया।
कुछ लोग शाश्वत को लेकर हाॅस्पिटल भागे ,वहां डॉक्टर ने तुरंत ही इलाज शुरू किया ।उसे ऑथियेटर -थियेटर ले जाकर डाॅक्टरों की टीम ने गोलियां निकालना शुरू किया।

ऑपरेशन सफल रहा । अभी उसे आई सी यू में शिफ्ट किया गया । कुछ ही देर बाद उसके शरीर में हरकत हुई ।जब नर्स ने पास जाकर देखा तो उसके होंठ हिल रहे थे ।
 जब ने नर्स ने गौर से सुना , शाश्वत नव्या !नव्या ! बुदबुदा रहा था ।
     
आर्मी हेडक्वार्टर से तड़के सुबह करीब चार बजे रहे होंगे कि आया ।
सारे लोग सो रहे थे । नव्या ने काफी देर रात तक पढ़ाई की थी इसलिए वो गहरी नींद में सो रही थी।
 फिर फोन की चीखती हुई आवाज उसके कानों में पड़ी
" वो अनमनी सी हो गई की सुबह-सुबह ही किसका फोन आ गया" पर रात में गश्त पर जाने से पहले शाश्वत की काॅल आई थी किन्तु कुछ ही देर में डिस्कनेक्ट हो गया था ।
 इस वजह से उसे लगा कि शाश्वत अब गश्त से वापस लौट आए होंगे और उन्होंने हीं फोन किया होगा । वो जल्दी से उठ कर बैठ गई और जल्दी जल्दी बाहर निकल आई।
 इधर शांतनु जी भी उठकर आ गए कि सब सो रहे हैं मैं हीं देख लूं इतनी सुबह-सुबह किसका फोन है ? नव्या के पहले शांतनु जी पहुंच गए थे । उन्होंने रिसीवर उठाया और हैलो कहा उधर से ये जानकारी होने पर की शाश्वत के पापा बोले रहे हैं, कहा गया, कैप्टन शाश्वत आतंकवादीयों से वीरता से मोर्चा लेते हुए शहीद हुए हैं । आप एक बहादुर सैनिक के पिता हैं उसनेे इस मुठभेड़ में अदम्य साहस का परिचय दिया है हम आपसे फिर बात करेंगे ।
 इतना कह कर फ़ोन कट गया । शांतनु जी कभी नव्या को देखते तो कभी फोन को । नव्या को तो भान भी नहीं था कि उसकी दुनिया उजड़ चुकी है । उसके ये पूछने पर कि क्या हुआ पापा किसका फोन था ? शाश्वत का था क्या ? क्या कह रहे थे वो ? मुझसे क्यों बात नहीं की ? शांतनु जी ने खुद पर काबू करते हुए कहा
 हां, उसी का फोन था नव्या ठुनकते हुए बोली, क्या पापा आपने मेरी बात क्यों नहीं करवाई मुझे अपने सूट की मैचिंग चूड़ियां भी मगवानी थी । हां ,बेटा फिर फोन आएगा तो बोल दूंगा । वो थका था सोने गया । जा, तू भी सो जा अभी से उठ कर क्या करेंगी ? नव्या ने पूछा पापा चाय बना दूं; पर उन्होंने मना कर दिया और कहा जब तेरी मम्मी उठेगी तब पी लूंगा ।
 
        नव्या को सोने भेज कर शांतनु जी अपने कमरे का दरवाजा बंद कर हिचक हिचक कर रोने लगे । उनकी सिसकियों से शाश्वत की मां की नींद भी खुल गई । वो चौंक कर बैठ गई और पूछा क्या हुआ जी आप रो क्यूं रहें हैं । खुद को संयत करते हुए वो बोले हमें अपनी आंखों में आंसू नहीं आने देना है शाश्वत की मां, हमें अपनी आंखों में आंसू नहीं आने देना है । जानती हो शाश्वत देश के काम आया है।
       
वो शहीद हुआ है , शाश्वत की मां, वो शहीद हुआ है । तुम एक शहीद की मां हो । भौचक्की! सी वो शांतनु जी का चेहरा ही देखती रह गई । तुम्हें क्या हो गया है क्या पागल हो गए हो जो सुबह सुबह बहकी-बहकी बातें कर रहे हो ।
उन्हें झकझोरते हुए वो बोली । अब शांतनु जी उन्हें अपने गले लगा कर कहने लगे तुम्हें धैर्य से काम लेना होगा मैं ने नव्या को सोने भेज दिया है उसे पता नहीं चलना चाहिए ।
हमें अपना दुख भूल कर नव्या को संभभालना है । पर मां के आंसू कहां रुकते हैं । उन्हें संभलने का समय देकर शांतनु जी ने नवल जी को फोन किया वे भी घबरा गए क्या बात है भाई साहब बस कुछ जरूरी काम है आप दोनों तुरंत आ जाइए । कह कर फ़ोन रख दिया । नवल जी सोचने लगे नव्या बीमार हो गई या उसनेे कुछ गलत किया है जो शांतनु जी इतनी सुबह-सुबह बुला रहे हैं । सशंकित मन से नवल जी यथाशीघ्र पत्नी सहित आ गए ।  
                                                   नवल जी घर में घुसते ही पूछने लगे सब खैरियत तो है भाई साहब । उन्हें इशारा करते हुए चुपचाप अंदर के कमरे में ले आए । और कहा अपना हौसला बनाए रखियेगा हमें नव्या को मिल कर संभालना है । फिर पूरी बात बताई । नवल जी और उनकी पत्नी दोनों ही ये सुनते ही बेसुध हो गए । काफी देर तक उन्हें संभालने में लगा । अब चारों मिलकर नव्या को कैसे समझाना है ये सोचने लगे । अभी कुछ ही देर हुई थी कि नव्या चाय लेकर आती दिखी । नवल जी को देखकर चौंक गई ।
       
 अरे!! मम्मी -पापा आप लोग और वो भी सुबह-सुबह।
नवल जी बोले, क्या करें तू तो आती नहीं तो सोचा हम ही चलें मिल आयें। क्या हम मिलने नहीं आ सकते? अरे नहीं पापा आप बिलकुल आ सकते हैं । सब को चाय देकर वहीं बैठ गई। सब के चेहरे से उसे कुछ गड़बड़ लग रहा था ।
अपनी उलझन दूर करने को बोली सच बताओ, मां कोई बात हो गई क्या । अब उसकी मम्मी बोली शाश्वत आ रहा है ना इसलिए हम दोनों भी आए हैं । शाश्वत तो अभी तीन दिन बाद आएगा । नव्या बोली । अब शांतनु जी बोले नहीं बेटा वो आ रहा है ।  
नव्या उठ खड़ी हुई अरे!! तब तो मुझे बहुत तैयारी करनी है ,आप सब बातें करों मैं जाती हूं । झट से साक्षी के पास गई और उसे जगाते हुए बोली साक्षी तेरे भैया आज ही आ रहे हैं मैं कुछ कर भी नहीं पाई ।
" प्लीज़ उठ जा मुझे जल्दी से मेंहदी तो लगा दे "। शाश्वत को मेंहदी लगे हाथ बहुत पसंद हैं । अभी तो कुछ काम भी नहीं है । ये कहते हुए मेंहदी का कोन साक्षी को पकड़ा दिया । साक्षी ने सुन्दर सी मेंहदी लगाते हुए शाश्वत का नाम लिख दिया ।

                 " उधर हेडक्वार्टर से बार बार फोन आ रहा था"
जिसे शांतनु जी बाहर जाकर बात कर रहे थे । उसे लेकर वे लोग निकल चुके थे सेना के हेलीकॉप्टर से शाश्वत का पार्थिव शरीर लाया जा रहा था। इधर जैसे जैसे शहर में बात फैल रही थी लोगों के फोन और लोग खुद भी आ रहे थे । जिसे नव्या के पापा अभी आने में समय कहकर भेज दे रहे थे । नव्या की मेंहदी सूख गई थी वो शाश्वत के पसंद की पीली साड़ी लेकर नहाने चली गई । जब वो नहाकर निकली तो कुछ शोर सुनाई दी । बाकी सब को तो नवल जी ने भेज दिया था पर कुछ पत्रकार आ गए थे और वो सभी घर वालों की प्रतिक्रिया लेना चाह रहे थे। नव्या शोर सुनकर बाहर आ गई उसे बाहर निकलता देख नवल जी और शांतनु जी के साथ शेष लोग भी साथ में बाहर आ गए थे , उसे देखकर एक पत्रकार द्वारा पूछा गया मैम आपको कैसे पता चला कि कैप्टन शाश्वत शहीद हो गए ।        
       "पत्रकार ने जैसे ही नव्या को देखा उस
को देखते ही" ,
उसकी ओर लपका । नवल जी और शांतनु जी ने उसे रोकने के लिए आगे बढ़े, पर उन दोनों की कोशिश सफल नहीं हो सकी।
वो, कुछ दूर था तब भी वहीं से नव्या से सवाल किया,

"नव्या जी आपको कब और कैसे पता चला? कैप्टन शाश्वत
शहीद हो गए ।
क्या कहा आपने?
नव्या ने विस्मित ! होकर पूछा ।
नवल जी कुछ नहीं बेटा कहते हुए, उसे अंदर लाने की कोशिश की ।
पर बाहर लगी भीड़ और न्यूज़ रिपोर्टर्स को देख कर उसे
कुछ अनहोनी की आशंका हो गई।

अब वो खुद पर काबू ना रख सकी।  
उसके कानों में यही शब्द बार - बार गूंजने लगे," कैप्टन शाश्वत शहीद हो गए ।    
                       
"नव्या बेहोश हो गई" । उसे नवल जी ने सहारा दिया और शांतनु जी की मदद से घर में लाकर बिस्तर पर लिटा दिया ।
       
                                        जैसे -जैसे शाश्वत के आने का समय हो रहा था मालूम हो रहा था पूरा शहर घर के बाहर उमड़ पड़ा हो । नव्या थोड़ी थोड़ी देर में होश में आती और शाश्वत का नाम पुकारती फिर बेहोश हो जाती । मैं भी वहीं पास ही थी । पर ,नव्या की ओर देखने की मेरी हिम्मत नहीं थी । जब नव्या को होश आया उसकी निगाह मुझ पर पड़ गई । अपनी मेंहदी दिखाकर बोली आंटी रची तो है ना !
इसमें मैंने शाश्वत का नाम भी लिखवाया है । ये देखिए, कहती हुई मुझे दिखाने लगी ।
"मेरा रोम-रोम चित्कार रहा था "। मै गवाह थी,समय के साथ परवान चढ़े उनके रिश्ते की । पलपल दोनों को साथ
जीते देखा था ।शाश्वत मेरे लिए बेटे जैसा ही था ।उसकी
सफलता मुझे अपनी सफलता लगती थी। नव्या की मासूमियत ने मुझे अपना बना लिया था । सदैव ही ,"मै उन दोनों को साथ देखना चाहती थी"। शाश्वत को खोने की मैने
कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी।जब मै इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रही थी ;तो नव्या के लिए कितना मुश्किल है ये स्वीकार करना । मेरे पास शब्द नहीं थे कि मै
 नव्या को कैसे समझाऊं ?
                                              बाहर ,शोर बढता ही जा रहा था । शहर के सारे बड़े अधिकारी , नेताओं का जमावड़ा लग गया था । शाश्वत को लेकर सेना के जवान आ गए थे । तिरंगे में लिपटा शाश्वत आ चुका था । सभी का रो रोकर बुरा हाल था । पूरा शहर उमड़ गया था , अपने
 बहादुर बेटे को की शहादत को सम्मान देने के लिए।
                                             
                                नव्या को शाश्वत के आखिरी दर्शन
 के लिए लाया गया । वो तो जैसे अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठी थी । शाश्वत की मां और नव्या की मां नव्या को लेकर बाहर शाश्वत के पास आई ।
 नव्या ने दोनों से अपने हाथों को छुड़ा लिया और जल्दी से
 तिरंगे में लिपटे शाश्वत के पास आ गई । उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर, शाश्वत से बातें करने लगी ।
 शाश्वत देखो, तुम्हें मेरे मेंहदी लगे हाथ पसंद है ना , देखो जैसे ही मैंने सुना कि तुम आ रहे हो मैंने मेंहदी लगवा ली ।

तुमने देखा नहीं ; गौर से देखो इसमें "तुम्हारा नाम भी लिखा है "।उठो शाश्वत ! उठो ना ! देखो मै तुम्हे पुकार रही हूं ।
तुम्हारी नव्या तुम्हें पुकार रही है।
                                                    नव्या की पीड़ा देखकर मेरा हृदय दर्द से फटा जा रहा था । सभी द्रवित मन से शाश्वत को याद कर रहे थे ।

 नव्या का, "करूण- कृंदन "सबके हृदय को चीर कर रख दे रहा था।
 उस शाश्वत से अलग करना बड़ा ही मुश्किल था । शाश्वत को अनन्त यात्रा पर ले जाने की घड़ी करीब आ गई थी ।जब रोते रोते अचेत हो गई नव्या ,तभी उसे अलग किया जा सका ।
 चारों तरफ, शाश्वत अमर रहे की आवाज गूंज रही थी ।
उसको अंतिम विदा देकर मैं भी वापस घर आ गई ।

    वक़्त किसी के लिए नहीं रुकता । धीरे - धीरे शाश्वत की तेरहवीं का दिन भी आ गया ।
 भारी मन से मै उनके घर गई।
सारे क्रिया - कर्म बोझिल वातावरण में निपटाए जा रहे थे।
अपना - अपना गम अंतः करण में दबाए सभी एक दूसरे
को दिलासा दे रहे थे ।

मै वापस जाने से पहले नव्या से मिलना चाहती थी। मेरे
मन की बात शायद नव्या तक पहुंच गई।    
                         
कुछ देर बाद ,उसने मुझे पास बुलाया और कहने लगी आंटी आपको तो सब पता है शाश्वत ने आपके सामने ही तो वादा किया था कि इस जनम नहीं जनम - जनम तक मेरा साथ निभाएंगे , वो मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते । शाश्वत हमेशा मेरे साथ रहेंगे ये कहते हुए आंखों से आंसुओं को पोछ रही थी । मैं नहीं रोऊंगी । उन्हें मेरा रोना बिल्कुल पसंद
नहीं था ।
फिर, मै कैसे रो सकती हूं। शाश्वत मेरी रग - रग में बसा है । वो मेरी सांसो की खुशबू है । मै हर पल उसे महसूस कर
सकती हूं।
                         
 नव्या की पीड़ा देखकर मेरा हृदय दर्द से फटा जा रहा था । सभी द्रवित मन से शाश्वत को याद कर रहे थे ।...








......आगे  के भाग पढ़ें दिए गए लिंक पर। कृपया अपनी बहुमूल्य समीक्षा जरूर दे।🙏
https://www.matrubharti.com/novels/20392/naina-ashk-na-ho-by-neerja-pandey










टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पछतावा

कौन कबूल करता है