अनंत की तलाश
चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में
तू कहीं न खो जाएकी आनंद की तलाश में ।
अंतहीन राह है कामना अपार है,
विलासिता की चाह है स्वार्थ बेहिसाब है।
स्वयं की ही बात हो चाहे कोई न साथ हो
चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में
तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश।
अर्थ तो तू पाएगा, पर अर्थ रह न जाएगा,
स्वर्ण तो मिल ही जाएगा,पर बड़ा सताएगा।
मरीचिका ये स्वार्थ की,किस ओर लेके जाएगी,
चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में,
तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश में ।
मर्म का आभास नहीं,दर्द का एहसास नहीं,
मैं हीं मैं तू चाहता, गर्त का एहसास नहीं।
छोड़ राह स्वार्थ की,आस पास देख तू,
पर्मार्थ की राह में, एक कदम चल के देख तू।
अनंत सुख तू पाएगा ,जो कभी चुक न पाएगा
चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में
तू कहीं न खो जाएकी आनंद की तलाश में ।
Awsmmmm..very nice
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंVery nice line
जवाब देंहटाएंNice lines
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहमें आनंद तभी प्राप्त होता है जब हम आनंद की तलाश नहीं करते हैं । very nice lines.
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