मैं क्या आजाद हूं..?
जश्न आजादी का उनको मुबारक,
जो है आजाद यहां।
हमको तो ऐसा लगता है जैसे,
आज भी हम गुलाम है यहां।
हम है नारी सदियों की बिचारी,
हमारी है औकात ही क्या..?
युग बदला.. सदियां बीती…..
राह कोई ना हमने छोड़ी।
क्या धरती क्या जल क्या अंबर,
हमने अपनी उज्वल पहचान है छोड़ी।
पर ऐसा अब लगता है,
सारी उपलब्धि बेकार है,
कुछ सरफिरे हैवानों के आगे,
हम कितने लाचार हैं।
अब तक थी हम सुरक्षित,
बाजार सड़क सूनी गलियों में,
पर अब तो हमारी अस्मत,
लुट जा रही मंदिर में दूसरे भगवानों के।
बचपन के सपने को मां बाबा ने राह दिखाई थी।
बड़े त्याग से बड़े जतन से इस मंजिल तक आई थी।
श्वेत कोट था शान हमारा, बनूगी दुखियों का मैं सहारा।
सारे सपने बिखर गए हैवानों के हाथों मसले गए।
तन पर अगनित जख्म लिए,
हम इस दुनिया से विदा लिए।
क्या अब भी कोई कहेगा..?
मैं आजाद हूं..?
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