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पछतावा

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आज नैना का पूरा बदन तेज बुखार से तप रहा था। उसे इतनी भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो अपनी आंखे खोल कर घड़ी की ओर देख ले कि कितना समय हुआ है। ये तो अंदाजा हो रहा था कि रोज के उठने का समय बीत चुका है। पर और कितनी देर हो चुकी है इसका उसे पता नहीं चल पा रहा था। तभी भड़ाक से उसके कमरे का दरवाजा खुला।  भतीजा सौम्य था। वो तुरंत ही उसके बिस्तर के पास आया और उसे हिला  कर जगाते हुए बोला, "बुआ..! बुआ..! उठो ना..! कितना सो रही हो आज। देखो ना मेरी स्कूल बस के आने का टाइम हो रहा है। अभी तक ना आपने मुझे ब्रेक फास्ट दिया है। ना ही मेरा लंच बॉक्स तैयार किया है। क्या मैं भूखे.. बिना लंच लिए ही स्कूल चला जाऊं..?" नैना ने धीरे से अपनी आँखें खोली और सौम्य की ओर देख कर बोली, "बेटा...! मुझे तेज बुखार है। मेरी हिम्मत बिल्कुल भी नहीं हो रही है कि मैं उठ कर तुम्हारे लिए ब्रेक फास्ट, टिफिन तैयार कर सकूं। प्लीज अपनी मम्मी से तैयार करवा लो आज।" सौम्य बस नाम का ही सौम्य था।  गुस्सा उसकी हरदम उसकी नाक पर रहता था। बुआ की बीमारी उसे बेवक्त आए मेहमान की तरह लगी। वो नैना का हाथ झटक कर पैर ...

मैं क्या आजाद हूं..?

जश्न आजादी का उनको मुबारक, जो है आजाद यहां। हमको तो ऐसा लगता है जैसे, आज भी हम गुलाम है यहां। हम है नारी सदियों की बिचारी, हमारी है औकात ही क्या..? युग बदला.. सदियां बीती….. राह कोई ना हमने छोड़ी। क्या धरती क्या जल क्या अंबर, हमने अपनी उज्वल पहचान है छोड़ी। पर ऐसा अब लगता है, सारी उपलब्धि बेकार है, कुछ सरफिरे हैवानों के आगे, हम कितने लाचार हैं। अब तक थी हम सुरक्षित, बाजार सड़क सूनी गलियों में, पर अब तो हमारी अस्मत, लुट जा रही मंदिर में दूसरे भगवानों के। बचपन के सपने को मां बाबा ने राह दिखाई थी। बड़े त्याग से बड़े जतन से इस मंजिल तक आई थी। श्वेत कोट था शान हमारा, बनूगी दुखियों का मैं सहारा। सारे सपने बिखर गए हैवानों के हाथों मसले गए। तन पर अगनित जख्म लिए, हम इस दुनिया से विदा लिए। क्या अब भी कोई कहेगा..?  मैं आजाद हूं..?

कायनात

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वो नहीं जानता

वो नही जानता...अहमियत अपनी.. मेरी जिंदगी तो है मिल्कियत उसकी। उसके वजूद से है शख्शियत मेरी, समझेगा एक दिन वो हैसियत अपनी।

ऐसा तो पहली बार नही है

 ऐसा तो पहली बार नही है, आहत मन पहली बार नही है। कुछ अपने और परायों से, स्वाद चखा कई बार यहीं है। फिर मन तू क्यों रोता है...? ऐसा तो अक्सर होता है।
"बस तुम ही हो .....", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :, https://pratilipi.page.link/ADicc4eDKVAchKeX6 भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!

कटास राज: अदृश्य गवाह

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"कटास राज : द साइलेंट विटनेस     भाग 1", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :, https://pratilipi.page.link/M2eoLNVaLBaSnrwG8 भारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!