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अद्भुत श्री राम

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अद्भुत श्री राम हरे हरे , हरे राम जय हरे हरे , हरि हरे हर क्लेश हरे, जन्म लिए प्रभु धाम अयोध्या, धन्य कियो प्रभु धरा अयोध्या। अद्भुत श्री राम हरे हरे श, हरि हरे हर क्लेश हरे, हर जन मानस के दिल में बसे,   रोम-रोम प्रभु प्रेम रचै। कैसे जिए यह राह दिखाई, आदर्श पुत्र ,पति ,पिता ,और भाई, ऊंच-नीच का भेद मिटाया, झूठे बेर शबरी के खाया। अद्भुत श्री राम हरे हरे, हरि हरे हर क्लेश हरे, मर्यादा प्रभु सब को सिखाया, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए। जय जय प्रभु राम हरे हरे, हरि हरे हरे कृष्ण हरे, अद्भुत श्री राम हरे हरे। नीरजा।

अनंत की तलाश

चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में तू कहीं न खो जाएकी आनंद की तलाश में । अंतहीन राह है कामना अपार है, विलासिता की चाह है स्वार्थ बेहिसाब है। स्वयं की ही बात हो चाहे कोई न साथ हो चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश। अर्थ तो तू पाएगा, पर अर्थ रह न जाएगा, स्वर्ण तो मिल ही जाएगा,पर बड़ा सताएगा। मरीचिका ये स्वार्थ की,किस ओर लेके जाएगी, चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में, तू कहीं न खो जाए आनंद की तलाश में । मर्म का आभास नहीं,दर्द का एहसास नहीं, मैं हीं मैं तू चाहता, गर्त का एहसास नहीं। छोड़ राह स्वार्थ की,आस पास देख तू, पर्मार्थ की राह में, एक कदम चल के देख तू। अनंत सुख तू पाएगा ,जो कभी चुक न पाएगा चल पड़ा है तू जो बंदे अनंत की तलाश में तू कहीं न खो जाएकी आनंद की तलाश में ।

जिन्दगी

ऐ जिन्दगी तू यूं न आजमा बहुत हौसला है इस मेरे दिल में। इन ठोकरों से विचलित जो हो जाऊं मेरी तो ऐसी फितरत नहीं हैं। जो मकसद रखोगे ऊंचा तुम अपना परिश्रम तुम्हें भी तो करना हीं होगा। समर्पित हृदय से करोगे जो कोशिश मंजिल तो इक दिन क्यौ न मिलेगी। चाहे तू जितना आजमा लें मुझको मुझे मेरी मंज़िल से डिगा न सकेगा। उड़ना है मुझको खुले आसमां में ज़मीं पे तू मुझको गिरा न सकेगा ऐ जिन्दगी तू यूं न

मर्यादा

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